|
हमारा इतिहास
संक्षिप्त इतिहास हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड का इतिहास और विकास भारत में विगत 77 वर्षों के वैमानिकी उद्योग के विकास को दर्शाता है ।
मैसूर सरकार के सहयोग से दूरदर्शी श्री वालचंद हीराचंद द्वारा 23 दिसंबर 1940 को बेंगलूर में हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट कंपनी के रूप में इस कंपनी को शामिल किया गया जिसकी प्राधिकृत पूंजी 4 करोड़ रुपए (चुकता पूंजी 40 लाख रुपए) थी तथा भारत में विमान का निर्माण करना इस कंपनी का उद्देश्य था । मार्च 1941 में, भारत सरकार अपनी 1/3 चुकता पूंजी के साथ कंपनी की एक शेयरधारी बनी और 1942 में इसका प्रबंधन अपने हाथ में लिया । संयुक्त राज्य अमेरिका की कांटिनेंटल एयरक्राफ्ट कंपनी के सहयोग से हिन्दु्स्तान एयरक्राफ्ट कंपनी ने हारलो प्रशिक्षक विमान, कर्टिस हॉक लड़ाकू विमान और वॉल्टी बमवर्षक विमान के निर्माण के साथ कारोबार प्रारंभ किया ।
दिसंबर 1945 में, इस कंपनी को उद्योग एवं आपूर्ति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया । जनवरी 1951 में, हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड को रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में लिया गया ।
कंपनी ने लाइसेंस के अधीन विदेशी अभिकल्प वाले विमानों और इंजनों जैसे प्रेंटिस, वैम्पायर, नैट जैसे विमानों का निर्माण किया था । कंपनी ने स्वदेशी रूप से विमानों का अभिकल्प एवं विकास का कार्य भी प्रारंभ किया । अगस्त 1951 में डॉ. वी.एम.घाटगे के समर्थ नेतृत्व में कंपनी द्वारा अभिकल्पित और उत्पादित एचटी-2 प्रशिक्षक विमान ने पहली बार उड़ान भरी । 150 से अधिक प्रशिक्षक विमानों का निर्माण किया गया और भारतीय वायु सेना तथा अन्य ग्राहकों को इसकी आपूर्ति की गई । धीरे-धीरे अभिकल्प क्षमता के निर्माण के साथ, कंपनी ने चार अन्य प्रकार के विमानों का सफलतापूर्वक अभिकल्पन व विकास किया जैसे फ्लाइंग क्लब के लिए उपयुक्त दो सीट वाला पुष्पक, हवाई सर्वेक्षण के लिए कृषक, एचएफ-24 जेट फाइटर (मारुत) और एचजेटी-16 बेसिक जेट प्रशिक्षक विमान '(किरण)' ।
इसी बीच अगस्त 1963 में एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड को एक कंपनी के रूप में शामिल किया गया जिसका पूर्ण स्वामित्व भारत सरकार के पास था और लाइसेंस के अधीन मिग-21 विमान का निर्माण करना इसका उद्देश्य था । जून 1964 में, एचएस-748 परिवहन विमान के लिए ढाँचा तैयार करने की वायु सेना की इकाई के रूप में 1960 में स्थापित एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग डिपो को एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड में अंतरित कर दिया गया । इसके तत्काल बाद सरकार ने हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड को एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड के साथ विलय करने का निर्णय लिया, जिससे कि विमानन क्षेत्र में संसाधनों को संरक्षित किया जा सके, जबकि देश में तकनीकी प्रतिभा सीमित थी और उद्देश्य यह था कि अत्यंत दक्षता और किफायती ढंग से समस्त विमान निर्माण इकाइयों के कार्यकलापों की योजना बनायी जा सके और इनका आपस में समन्वय किया जा सके।
इस प्रकार, दिनांक 1 अक्तूबर 1964 को भारत सरकार द्वारा जारी विलय आदेश के अंतर्गत हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड और एरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड का विलय संपन्न हुआ और विलय के बाद कंपनी का नाम हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) रखा गया, जिसका मुख्य कार्य था विमानों, हेलिकॉप्टरों और इंजनों तथा संबंधित प्रणालियों जैसे उड्डयानिकी, उपकरणों और उपसाधनों का विकास, निर्माण, मरम्मत और पुनर्कल्पन करना ।
विकास एवं समेकन
वर्ष 1970 में, एसएनआईएएस, फ्रांस से लाइसेंस के अधीन केवल चीता एवं चेतक हेलिकाप्टरों के निर्माण हेतु बेंगलूर में वर्ष 1970 में पृथक प्रभाग की स्थापना की गई । विमान के उपकरणों और उपसाधनों के निर्माण हेतु लखनऊ में एक नया प्रभाग भी स्थापित किया गया । मारुत, किरण, अजीत, चेतक, चीता और जगुआर पर लगाए जाने हेतु पहियों एवं ब्रेक के लिए मेसर्स डनलप, यूके, अवचक्रों तथा हाइड्रॉलिक उपकरण के लिए डॉउटी, और केबिन में हवा के दाब तथा वातानुकूलन उपकरण के लिए नॉर्मल एयरगैरेट, पैनल उपकरण एवं जाइरो के लिए स्मिथ, यूके सफीना एवं एसएमआईएफ, फ्रांस, इजेक्शन सीट के लिए मार्टिन बेकर, यूके और इंजन इंधन प्रणालियों के लिए ल्यूकास के साथ लाइसेंस करार किए गए । इसी प्रकार मिग-21 श्रृंखला वाले विमानों के लिए उपसाधनों के निर्माण हेतु यूएसएसआर के प्राधिकारियों के साथ ऐसी ही व्यवस्था की गई ।
वर्ष 1970 और 1974 के मध्य में बसंत कृषि विमान का अभिकल्प एवं विकास कार्य प्रारंभ किया गया तथा नैट विमान के सुधरे हुए रूप अजीत का अभिकल्प एवं विकास कार्य 1972 और 1980 के बीच में प्रारंभ किया गया । एचपीटी-32 प्रारंभिक पिस्टन इंजन प्रशिक्षक विमान, किरण मार्क II (किरण मार्क I / Iए का सुधरा हुआ रूप) तथा अजीत प्रशिक्षक विमान एवं प्रोन्नत हल्के हेलिकॉप्टर के अभिकल्प व विकास के लिए वर्ष 1976 में परियोजनाओं की मंजूरी दी गई ।
आईएफएफ, यूएचएफ, एचएफ, रेडियो उपकरणों, रेडियो विभव मापी, ग्राउंड रेडार आदि के विकास एवं निर्माण के लिए वर्ष 1971 में हैदराबाद में एवियानिक्स डिज़ाइन ब्यूरो का गठन किया गया । इसी प्रकार अवचक्र तथा हाइड्रालिक प्रणालियों, वातानुकूलन और दाब प्रणालियों, ईंधन नियंत्रण / मापन प्रणालियों, जनित्र नियंत्रण और सुरक्षा इकाइयों स्थैतिक इन्वर्टर आदि जैसे उपसाधनों के अभिकल्प एवं विकास के लिए लखनऊ में वर्ष 1973 के दौरान अभिकल्प स्कंध की स्थापना की गई ।
वर्ष 1979 में ब्रिटिश एरोस्पेस के साथ लाइसेंस करार किए जाने के बाद कंपनी ने जगुआर विमान का निर्माण प्रारंभ किया तथा अडौर इंजनों के लिए रोल्सरॉयस-टर्बोमेका के साथ लाइसेंस करार किया । इसी प्रकार उड्डयानिकी और उपसाधनों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रतिष्ठानों के साथ लाइसेंस करारों पर भी हस्ताक्षर किए गए।
वर्ष 1982 में कंपनी ने यूएसएसआर के साथ एक करार किया तथा कंपनी के नासिक प्रभाग में मिग-21 बिस के लिए परियोजना पर स्विंग-विंग मिग-27 विमान का उत्पादन प्रारंभ किया ।
इनर्शियल नौचालन प्रणाली, शिरोपरि प्रदर्शन, अस्त्र लक्ष्य वाले कंप्यूटर, कम्बाइंड मैप और इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले, लेसर रेंजर एवं मार्क्ड टार्गेट सीकर, आटो-स्टेबिलाइजर तथा जगुआर और इसी प्रकार मिग-27 एम विमान के लिए इसी प्रकार की प्रोन्नत प्रणालियों के निर्माण हेतु जिला सुल्तानपुर (यू.पी) में वर्ष 1983 में एचएएल कोरवा प्रभाग की स्थापना की गई।
एचएएल देश के वांतरिक्ष कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से लगा है और अपना योगदान दे रहा है । वर्ष 1988 में पृथक एरोस्पेस प्रभाग की स्थापना की गई । भारतीय वांतरिक्ष अनुसंधान संगठन की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए यह प्रभाग वांतरिक्ष कार्यक्रम के प्रति समर्पित है ।
औद्योगिक गैस टर्बाइन इंजनों के बढ़ते हुए बाज़ार में प्रवेश करने के लिए वर्ष 1988 में इंडस्ट्रियल एण्ड मरीन गैस टर्बाइन प्रभाग का गठन किया गया । इस समय यह प्रभाग इंडस्ट्रियल एवोन इंजनों तथा एलिशन 501के और 571के श्रृंखला से संबंधित मरम्मत एवं पुनर्कल्पन कार्य में लगा है । इसके अलावा, एलएम 2500 इंजन का निर्माण कार्य भी प्रारंभ किया गया है । यह प्रभाग देश में विभिन्न प्रकार के वर्तमान गैस टर्बाइन का पुनर्कल्पन कर रहा है, इस प्रकार ओएनजीसी, गेल, टीएनईबी, आरएसईबी आदि को उनके गैस टर्बाइन को बनाए रखने में लागत प्रभावी सेवा प्रदान कर रहा है ।
एचएएल बेंगलूर हवाई अड्डे के प्रचालन की सहक्रिया की दृष्टि से मई 2000 में हवाई अड्डे से संबंधित सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक स्वतंत्र लाभ केंद्र का निर्माण किया गया । हवाई जहाजों के प्रचालन से संबंधित बाजार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तथा बेंगलूर में कंपनी में उपलब्ध बुनियादी सुविधा का वाणिज्यिक रूप से दोहन करने के संबंध में ध्यान देने हेतु वर्तमान संसाधनों को पुनर्गठित करना एयरपोर्ट सर्विस सेंटर का मुख्य उद्देश्य था ।
मिग श्रृंखला के विमानों के निर्माण एवं पुनर्कल्पन और हाल ही में मिग बिस विमान के उन्नयन कार्य में लगे रहने वाले नासिक प्रभाग में सुखोई-30 एमकेआई विमान का लाइसेंस निर्माण करने के लिए रूसी भागीदारों के साथ करार पर हस्ताक्षर करने के साथ इसका विस्तार किया गया । तदनुसार फरवरी 2002 में यह निर्णय लिया गया कि नासिक में दो प्रभाग बनाए जाएँ अर्थात सुखोई 30 एमकेआई के उत्पादन हेतु विमान निर्माण प्रभाग और वर्तमान मिग श्रृंखला के विमानों के पुनर्कल्पन एवं उन्नयन के लिए एयरक्राफ्ट ओवरहाल प्रभाग गठित किए जाएँ ।
रूसी विनिर्माता से लाइसेंस के अधीन एसयू 30 एमकेआई विमान के लिए एएल 31 एफपी इंजन के निर्माण के निर्णय के फलस्वरूप कोरापुट प्रभाग में एक नया प्रभाग स्थापित करने का विचार किया गया ताकि फरवरी 2002 में परियोजना को प्रारंभ किया जा सके । इस नए प्रभाग में परियोजना कार्यकलापों का तदनुसार आरंभ हो चुका है ।
मात्र एएलएच के निर्माण और संबंधित कार्यकलापों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए, चेतक एवं चीता हेलिकाप्टरों और उनसे संबंधित हिस्से पुर्जों के निर्माण और मरम्मत / पुनर्कल्पन कार्यकलापों को बैरकपुर शाखा कारखाना में अंतरित कर दिया गया तथा बैरकपुर प्रभाग का गठन किया गया । इसी प्रकार एएलएच के पुनर्कल्पन कार्य हेतु वर्ष 2006 में एमआरओ प्रभाग का निर्माण किया गया ।
हलके भार के लिए विमान निर्माण में कॉम्पोजिट सामग्री का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है । वर्ष 2007 में नया एयरक्राफ्ट कॉम्पोजिट प्रभाग (एसीडी) गठित किया गया जहाँ एएलएच, एलसीए आदि जैसी आंतरिक परियोजनाओं के लिए कॉम्पोजिट सामग्री हेतु पूर्ण समर्पित निर्माण सुविधा तैयार की गई है ।
बेंगलूर में कारगर और केंद्रित आम सेवाओं के लिए दिसंबर 2007 में सुविधा प्रबंधन प्रभाग तैयार किया गया ।
मिशन प्रणालियों, विमान उन्नयन और प्रौद्योगिकी विकास पर ध्यान देने के लिए अनुसंधान एवं विकास कार्यकलापों को बढ़ावा देने के विचार से नवंबर 2008 में मिशन एण्ड कॉम्बैट सिस्टम आर एण्ड डी सेंटर का गठन किया गया । एचएएल हैदराबाद की एक इकाई स्ट्रैटजिक इलेक्ट्रानिक्स फैक्टरी कासरगोड, केरला में नवंबर 2012 में स्थापित की गई ।
हमारी रक्षा सेवाओं के आधुनिकीकरण कार्यक्रम को हलका लड़ाकू विमान (एलसीए) के आंतरिक विकास से बहुत बड़ा बल मिलेगा । हलके लड़ाकू विमान (एसलीए) के उत्पादन हेतु मार्च 2014 में बेंगलूर में, एक अलग एलसीए प्रभाग की स्थापना की गई ।
अनुसंधान एवं अभिकल्प केंद्र
कंपनी के प्रभागों में व्यापक अभिकल्प संगठन उपलब्ध हैं । अब तक उत्पादित कुल 31 प्रकार के विमानों में 17 विमानों का अभिकल्प देशी है । कंपनी के पास विभिन्न प्रकार के विमानों और इसकी प्रणालियों के अभिकल्प तथा निर्माण में बहुत व्यापक अनुभव है । कंपनी के भावी विकास के लिए अनुसंधान एवं विकास क्षमता को सुदृढ़ बनाना एचएएल के लिए आवश्यक समझा गया और तदनुसार तत्कालीन अभिकल्प कार्यालयों को निम्नलिखित अनुसंधान एवं विकास केंद्रों के रूप में पुनर्गठित तथा पुनर्संगठित किया गया है ।
क्र.सं. |
अनुसंधान एवं अभिकल्प केंद्र |
कार्यकलाप |
1 |
विमान अनुसंधान एवं अभिकल्प केंद्र, बेंगलूर |
फिक्सड विंग एयरक्राफ्ट (एलसीए, आईजेटी, यूएवी, एचटीटी 40) का अभिकल्पन व विकास |
2 |
रोटरी विंग एयरक्राफ्ट अनुसंधान व अभिकल्प केंद्र, बेंगलूर |
रोटरी विंग एयरक्राफ्ट (एलसीएच, एलयूएच, आईएमआरएच, आरयूएवी) का अभिकल्पन व विकास |
3 |
मिशन एवं योधी प्रणाली अनुसंधान व अभिकल्प केंद्र, बेंगलूर |
मिशन प्रणालियॉं, विमान उन्नयन एवं प्रौद्योगिकी विकास |
4 |
हवाई इंजन अनुसंधान व अभिकल्प केंद्र, बेंगलूर |
लघु, मध्यम इंजन एवं परीक्षण बेड डिजाइन (एचटीएफई 25 किलो न्यूटन, एचटीएसई 1200 किलोवाट) |
5 |
सामरिक इलेक्ट्रानिक्स अनुसंधान व अभिकल्प केंद्र, हैदराबाद |
उड्डयानिकी से संबंधित मदें |
6 |
परिवहन विमान अनुसंधान एवं अभिकल्प केंद्र, कानपुर |
परिवहन विमान का विकास एवं आशोधन / उन्नयन |
7 |
विमान उन्नयन अनुसंधान एवं अभिकल्प केंद्र, नासिक |
रूसी विमानों पर विमान / प्रणाली उन्नयन कार्य |
8 |
वांतरिक्ष प्रणाली एवं उपकरण अनुसंधान व अभिकल्प केंद्र, लखनऊ |
यांत्रिक, हाइड्रालिक एवं विद्युतीय उपसाधनों का विकास |
9 |
गैस टर्बाइन अनुसंधान व अभिकल्प केंद्र, कोरापुट |
रूसी इंजनों के अभिकल्प में सुधार |
10 |
केंद्रीय सामग्री एवं प्रक्रिया प्रयोगशाला एवं एनडीटी केंद्र, बेंगलूर |
सामग्री गढ़ाई, ढलाई एवं नई प्रक्रियाओं का विकास |
11 |
वांतरिक्ष प्रणाली एवं उपस्कर अनुसंधान व अभिकल्प केंद्र, लखनऊ |
उड़ान डाटा रिकार्डर एवं प्रदर्शन प्रणाली को विकसित करना । |
एचएएल - आज (सितंबर 2018)
एचएएल में सुखोई 30 एमकेआई, हलका लड़ाकू विमान (एलसीए), डॉर्नियर-228 विमान; ध्रुव-एएलएच, चेतक व चीतल हेलिकॉप्टरों का उत्पादन तथा जगुआर, किरण मार्क I/ Iए/II, मिराज, एचएस-748 एएन-32, मिग 21, सुखोई-30 एमकेआई, हॉक व डॉर्नियर-228 विमान; एवं एएलएच, चीतल, चीता व चेतक हेलिकाप्टरों की मरम्मत एवं ओवरहॉलिंग का कार्य किया जा रहा है ।
कंपनी सभी पुराने एवं नए उत्पादों के जीवन चक्र को बनाए रखने के लिए रखरखाव और ओवरहॉल सेवाओं को संपन्न करती है । वर्तमान में, 13 प्रकार के विमानों / हेलिकाप्टरों तथा 14 प्रकार के इंजनों की ओवरहॉलिंग की जा रही है । इसके अतिरिक्त, रूसी, पश्चिमी तथा स्वदेशी अभिकल्पन वाले विमानों पर लगे विभिन्न प्रकार के उपसाधनों एवं एवियॉनिक्स की मरम्मत / ओवरहॉल संबंधी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं ।
एचएएल अपने समर्पित एरोस्पेस प्रभाग (एएसडी) के माध्यम से इसरो के सैटेलाइट लॉन्च वाहनों और उपग्रहों के लिए संरचनाओं की आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है । एचएएल (एएसडी) पांच दशकों से इसरो के लिए मुख्य आधार भागीदार (मेन स्टे पार्टनर) रहा है तथा इस यात्रा में उपग्रहों, एसएलवी, एएसएलवी, पीएसएलवी, जीएसएलवी एमके II एवं जीएसएलवी एमके III (एलवीएम 3), चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 एवं मार्स ऑर्बिटर मिशन के लिए हार्डवेयर प्रदान करके सदैव ही समर्थित रहा है । यह प्रभाग जीएसएलवी एमके II के एल -40 बूस्टर रॉकेट्स को एकीकृत करता है तथा इसे सीधे लॉन्च सुविधा में पहुंचाता है । एचएएल (एएसडी) क्रयोजेनिक एवं अर्द्ध क्रयोजेनिक इंजन तथा इसरो के लिए पीएसएलवी /जीएसएलवी एमके II की पीएस2/जीएस2 अवस्था के संपूर्ण के संपूर्ण एकीकरण को संपन्न करने हेतु एक व्यापक विनिर्माण सुविधा स्थापित कर रहा है ।
औद्योगिक एवं सामुद्रिक गैस टर्बाइन इंजन : एलएम-2500 समुद्री गैस टर्बाइन इंजन का विनिर्माण एवं ओवरहॉल कार्य औद्योगिक एवं सामुद्रिक गैस टर्बाइन प्रभाग के उत्पादन कार्य के माध्यम से किया जा रहा है । यह प्रभाग औद्योगिक एवॉन तथा औद्योगिक 501K इंजनों की मरम्मत तथा ओवरहॉल का कार्य भी संपन्न करता है ।
विकास परियोजना:
बृहत रूप में वर्तमान स्वदेशी विकास कार्यक्रमों में हलका लड़ाकू विमान(एलसीए) एमके Iए, हलका लड़ाकू हेलिकॉप्टर (एलसीएच), हलका उपयोगिता हेलिकॉप्टर (एलयूएच), बेसिक टर्बोप्रॉप ट्रेनर एचटीटी 40 व भारतीय बहु भूमिका हेलिकॉप्टर (आईएमआरएच) शामिल हैं । एचटीएफई 25 तथा एचटीएसई 1200 इंजनों को अपग्रेड करने का कार्य भी एचएएल ने प्रारंभ किया है । हेलिकॉप्टर तथा एयरक्राफ्ट एक्सेसरीज एवं एवियॉनिक्स के लिए विमान प्रदर्शन प्रणाली, मिशन कंप्यूटर, स्वचालित उड़ान प्रणालियों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्म-निर्भरता में वृद्धि हेतु प्रौद्योगिकी विकास प्रोजेक्टों को प्रारंभ किया गया है ।
|